दिसंबर में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) की प्रवृत्ति में बड़ा बदलाव देखने को मिला है क्योकि उनके द्वारा की गयी भारतीय इक्विटी की खरीद में लगातार इज़ाफ़ा हुआ है। जो की पिछले दो महीने से बड़ी संख्या में फण्ड निकासी कर रहे थे।
NSDL के आंकड़ों के अनुसार, सबसे हालिया सत्र में, FPIs ने भारतीय इक्विटी में ₹8,539.9 करोड़ का निवेश किया, जबकि इससे पहले के दो सत्रों में क्रमशः ₹1,797.6 करोड़ और ₹3,664.7 करोड़ का निवेश किया। इस प्रकार कुल संचयी निवेश ₹14,002 करोड़ तक पहुंच गया है।
ध्यान देने वाली बात ये है कि नवंबर में FPI द्वारा की गई बिकवाली में कमी आई, जब उन्होंने महीने के दौरान भारतीय शेयर बाजार से एक्सचेंजों के माध्यम से ₹39,315 करोड़ की निकासी की। यह अक्टूबर में ₹94,017 करोड़ की बिकवाली से काफी कम है, जो रिकॉर्ड पर सबसे बड़ा मासिक बहिर्वाह(outflow) था।
किन क्षेत्रो में है FPIs की सबसे ज़्यादा/कम रूचि?
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPIs) आईटी, BFSI (बैंकिंग, वित्तीय सेवाएं और बीमा), और रियल एस्टेट सेक्टर में फिर से रुचि दिखा रहे हैं, जिसका कारण आकर्षक वैल्यूएशन और विकास की संभावनाएं हैं। आईटी सेक्टर को वैश्विक डिजिटल मांग से लाभ हो रहा है, जबकि BFSI को तकनीकी प्रगति और बाजार की स्थिरता का समर्थन मिल रहा है। रियल एस्टेट सेक्टर BFSI की वृद्धि से जुड़े वाणिज्यिक स्थानों की बढ़ती मांग से लाभ उठा रहा है।
इसके विपरीत, FPIs तेल और गैस, ऑटो, और दूरसंचार क्षेत्रों से धन निकाल रहे हैं। तेल और गैस क्षेत्र उच्च वैल्यूएशन और वैश्विक मूल्य अस्थिरता से प्रभावित हो रहा है। ऑटो क्षेत्र धीमी वृद्धि और प्रतिस्पर्धात्मक दबावों का सामना कर रहा है, विशेष रूप से इलेक्ट्रिक वाहनों से। अंततः, दूरसंचार क्षेत्र नियामक मुद्दों और बाजार संतृप्ति के कारण चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिससे लाभप्रदता पर चिंताएं बढ़ रही हैं।
खुदरा निवेशकों पर प्रभाव
FPI की गतिविधि भारतीय बाजार में खुदरा निवेशकों (Retail Investors) की रणनीतियों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है। जैसे ही FPI नेट खरीदार बनते हैं, खुदरा निवेशकों को आत्मविश्वास मिलता है, और वे अक्सर उनकी रणनीतियों का पालन करते हैं। यह मेलजोल व्यक्तिगत निवेशकों में भागीदारी और खरीदारी गतिविधि को बढ़ावा देता है।
इसके अतिरिक्त, खुदरा निवेशक अपनी रणनीतियों को इस तरह से अनुकूलित करते हैं कि वे उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हैं जहां FPI के प्रवाह मजबूत होते हैं, जैसे कि आईटी और BFSI, जबकि तेल और गैस तथा ऑटो जैसे क्षेत्रों में निकासी को देखते हुए सतर्कता बरतते हैं। कुल मिलाकर, FPI की गतिविधियाँ खुदरा भावना और निवेश निर्णयों को आकार देती हैं, जिससे एक अधिक जुड़ा हुआ बाजार वातावरण बनता है।
वैश्विक और घरेलु करक
FPI के निर्णय वैश्विक कारकों से महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित होते हैं, जैसे कि फेडरल रिजर्व की मौद्रिक नीति, भू-राजनीतिक तनाव, और कच्चे तेल की कीमतें। उच्च अमेरिकी ब्याज दरें उभरते हुए बाजारों से पूंजी बहिर्वाह का कारण बन सकती हैं, जिससे FPI प्रवाह में कमी आ सकती है।
भू-राजनीतिक संघर्ष असमंजस पैदा करते हैं, जिससे FPI जोखिमपूर्ण बाजारों से धन निकालने के लिए प्रेरित होते हैं। इसके अतिरिक्त, कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते हैं; बढ़ती कीमतें मुद्रास्फीति और कमजोर व्यापार संतुलन का कारण बन सकती हैं, जिससे भारत निवेशकों के लिए कम आकर्षक हो जाता है।
इसके विपरीत, तेल की कीमतों में गिरावट निवेशक भावना को बढ़ावा दे सकती है और FPI प्रवाह को प्रोत्साहित कर सकती है, जिससे बाजार की गतिशीलता को आकार मिलता है।
RBI के हालिया निर्णयों की भूमिका
भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा हाल ही में कैश रिज़र्व रेशियो (CRR) को 4% तक घटाने से बैंकिंग सिस्टम में तरलता में महत्वपूर्ण वृद्धि होगी, जिससे लगभग ₹1.16 लाख करोड़ का ऋण देने के लिए मुक्त होगा। उपलब्ध धन में यह वृद्धि आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने की उम्मीद है, विशेष रूप से रियल एस्टेट और उपभोक्ता स्थायी वस्त्र (Consumer Durables) जैसे प्रमुख क्षेत्रों का समर्थन करके।
इसके अतिरिक्त, CRR कटौती का उद्देश्य बाजार की भावना को मजबूत करना है, जिससे मुद्रास्फीति नियंत्रण और विकास समर्थन के बीच संतुलन बनाए रखा जा सके, और विशेष रूप से बैंकिंग स्टॉक्स को लाभ हो।
भविष्य की प्रवृत्तियों के लिए संभावनाएं
दिसंबर 2024 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) का हालिया पुनरुत्थान 2024 में इसके संभावित स्थिरता का संकेत देता है। वैश्विक परिस्थितियों में सुधार, जिसमें अमेरिकी ट्रेजरी यील्ड्स और भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदें शामिल हैं, भारतीय बाजारों की आकर्षण को बढ़ा सकते हैं।
हाल ही में चुनावी विजय के बाद राजनीतिक स्थिरता भी निवेशकों का आत्मविश्वास बढ़ाती है। इसके अतिरिक्त, भारतीय बांडों को जेपी मॉर्गन गवर्नमेंट बॉंड इंडेक्स में शामिल किए जाने से महत्वपूर्ण विदेशी पूंजी आकर्षित होने की संभावना है।
यदि आगामी कॉर्पोरेट आय में वृद्धि दिखाई देती है, तो FPIs निवेश बढ़ा सकते हैं, जिससे 2024 में FPI गतिविधि के लिए एक सतर्क रूप से आशावादी दृष्टिकोण उत्पन्न हो सकता है।
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